Wednesday, 29 April 2015
पुण्य पाप कु खाता
तेरु भी खाता, मेरु भी खाता
खाता सबों कु खुल्यू छ ।
कैकु खाली ता कैकु भूरयु
कैकु जमा कन मिसायु छ ॥
पैसों कु खाता सबों न देखी
कर्मो कु असली खाता छ ।
वे खाता कु बात छौ कनु
जैकू लेखपाल विधाता छ ॥
सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
Wednesday, 8 October 2014
दगड मा क्या लिजायी ?
सरा
जिन्दगी नौकरी कायी
खुब
कमाई ....
बच्चोँ
तै पढैयी लिखयी क
पहुँच
पर पहुँचायी ...
एक एक
पैसा जोडी क
घर कुडी
बणायी
बच्चोँ
क सुख क खातिर
अपणु सुख
बिसरायी
पर
बुढेदुँ दौँ
अब पछतायी.... !!!!!!
जुँक
बान खैरी खायी
उन ही बैरी
बणायी .....
कमायीँ –
धमायीँ
सभी यखी
रै ग्यायी ...
जाँदी
दौँ पैसा ना पायी
जुँ
बिचारो न पुन्य कमायी
दगड मा
वी लिजायी
जिन्दगी
भर लोभी बण्यु रैय
मुरदी
दौ अब पछतायी ..!!!
“मेरा
अपणो सुणा तै सैयी
कुछ ईन
भी करँया कमैयी
जाँदी
दौँ सौतीँ - समाळी
दगड मा वीँय लिजैयी”
Copyright @ Vinod Jethuri on 08/10/2014 @ 6:50 AM
Saturday, 31 May 2014
आस
उत्तराँचली भाषा, साहित्य
अर सँस्क्रति क सर्जन व सँवर्धन क उद्देश्य सी आयोजित काब्य अर साँस्क्रतिक
सम्मेलन - 2014 मा सकारात्मक सोच अर आशावादी आस पर लिखीँ मीन अपणी कविता “आस” प्रस्तुत करी। आप सभी दगड़ियों कु दगड भी सामल्यात कारण चांदु ।
आस, क्या होँदी आस
आस, कन होन्दी आस
आस, कख होन्दी आस
आस,कैसी होन्दी आस
आस, उम्मीद की एक लौ छ आस
आस, सुपनियोँ कु सँसार छ आस
आस, लम्बी जग्वाळ कु परिणाम छ
आस
आस, सुख: दुख कु अह्सास छ आस
आस, माँ तै बेटा सी, कमाण की आस
आस, भैजी तै भुल्ली की रखडी की आस
आस, दादा तै नाती की औण की आस
आस, अर ब्वारी तै स्वामी सी मिलण की आस
आस, बाँझ कुडियोँ तै मनखियोँ की आस
आस, खाली गाँवो तै रैबासियोँ की आस
आस, बुढि- बुढियो तै सहारु
की आस
आस, पहाड अर पहाड क लोगो तै विकास की आस
आस, सुखदी फसलोँ मा द्योरु
की, बरखण की आस
आस, उबादीँ ग्वेरोँ की
जिकुडी तै पाणी की आस
आस, छुँयाळ पण्डेरियोँ तै
अपणी, अग्ल्यार की आस
आस, भुखन बिलखुदु बेसाहरु
तै खाणु की आस
आस, खाली जँगळो मा घसेरियोँ
तै, घास की आस
आस, खरड डाँडियो तै हरी भरी,
हरियाली की आस
आस, सुख्याँ धारोँ मा फिर
सी पाणी औण की आस
आस, बाँझ पुंगडियोँ मा
लहराँदी फसलोँ की आस
आस, दुर परदेश बटी घर जाण की आस
आस, बार-त्योहारोँ मा सँग रैण की आस
आस, गौळ भिँटे क खुद बिसराण की आस
आस, अर दगडिया कु ब्यो मा छ्क्की क नचण की आस
आस, भटकद बेरोजगारोँ तै
नौकरी की आस
आस, मेहनती मजदुरोँ तै तनख्वा की आस
आस, हफ्ता भर काम करी क
छुट्टी की आस
आस, अर मालिकोँ तै छ्क्की क मुनाफू कमाण की आस
आस, तिलू रौतेली की मन मा, जीतण की आस
आस, माधो सिँह भँडारी तै मलेथा की, कुल की आस
आस, राजुला तै मालोशाही की, औण की आस
आस, श्री देव सुमन तै राज कर सी, मुक्ति की आस
आस, साहित्य तै अच्छु लिखवारोँ की आस
आस, सँस्क्रति तै भाषा प्रेमियो की आस
आस, भाषा तै वेकी बुलदारोँ की आस
आस, बुलदारोँ तै और बचाँळ्ण्दरोँ की आस
आस, मेरी आप क प्रति आस
आस, सुख अर सम्रधी की आस
आस, हँसी अर खुशी की आस
आस, प्रेम अर भाईचारा की आस
आस, मानवता अर दयालुता की आस
निश्कर्ष:-
सच्चु मन सी सच्ची आस
खुद पर हो गर विश्वास
कुछ करण की हो ललकार
सुपनियाँ होन्दा वेक सच
साकार
सुपनियाँ होन्दा वेक सच साकार
सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी, 29 मई 2014 @
8:10 A.M
Tuesday, 27 May 2014
जन्मदिन की सुभकामना
माणी कि बहुत मुस्किल
बाठोँ बटी ह्वेक अयाँ हम
घनघोर जँगळो बटी......
स्यो-बाघो की डौर लगी
....
नागाँ खुटो मा काँडा चुभी
घाम क दिनो म पसीना छुटी
पर ....................
खडी उकाळ का बाद
सीधु- सैणु बाठु ...
अर वेक बाद...
फूलो कु बग्वान...
फूलोँ कु खुशबु मा
उकाळी की खैरी तै
बिसरी जौला...........
अर फिर सी अगने कु
बाठु नपला .......
जिदगी कु हर पल साथ छ तेरु
तेरी खुशी मा खुशी छ मेकु
कभी अपणु तै ईखुली ना समझी
तू ही जीण कु सहारु छ मेरु ...
जन्मदिन की बहुत – बहुत
बधाई अर ढेर सारी सुभकामना । औण वाळ दिन खुशी अर उमँग, सुख अर शांति व प्रेम अर
विश्वास क होला ईन मै भगवान सी प्रार्थना करदु ।
विनोद जेठुडी, 27 May 2014 @ 8:10 AM
Monday, 22 July 2013
यख अर वख
यख
छ या पुडणी रात ।
वख
होली खुलणी रात ॥
यख
छ या नसिली रात।
वख
होली सुरिली रात ॥
यख
खुद्याँदी या रात ।
वख
हँसादी वा रात ॥
यख
ड्युटी पर तैनात ।
वख
पटणी होली बरात ॥
यख
दिन ता वख रात ।
समय
समय की या बात॥
यख
देंदु क्वीनी साथ ।
वख
मयाळु मनख्यात ॥
यख
गडियों कु घुंघयाट ।
वख
चखुलियों कु चैच्याट॥
यख
क्वी नी आर पार ।
वख
दगडियोँ कु साथ ॥
यख
फैसन कु फफराट ।
वख
अँगडी की वा गात ॥
यख
ए/सी मा बुखार ।
वख
जड्डू न चचकार ॥
यख
बिमारियोँ न बुरु हाल ।
वख
की हवा पाणी खुशहाल॥
यख
दुरी कु अहसास ।
वख
अपणो कु साथ ॥
वख जड्डू न चचकार ॥
यख बिमारियोँ न बुरु हाल ।
वख की हवा पाणी खुशहाल॥
यख दुरी कु अहसास ।
वख अपणो कु साथ ॥
सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
on 08/06/2013 @ 6:05 AM
on 08/06/2013 @ 6:05 AM
Friday, 19 July 2013
उत्तराखँडी सँस्क्रति ईन युनिवर्सिटी औफ सिनसिनाटी
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति मे से एक है, भारतवर्ष की बोली भाषा, भारतवर्ष के लोग, भारतवर्ष की संस्कृति भारतवर्ष का साहित्य और भारतवर्ष का इतिहास के बारे मे विस्तार से जानने के लिये दुनियाभर से लोग यहां आते है और हमारी संस्कृति को और अधिक जानने मे रुची रखते है। हमारी संस्कृति मे ईतनी सुन्दरता व मिठास है कि शायद ही दुनिँया की किसी भी देश की संस्कृति मे हो, इसी का नतिजा है कि युनिवर्सिटी औफ सिनसिनाटी यू.एस.ए मे भारतीय लोक सँगीत व बाध्य यँत्रोँ पर रिसर्च किया जा रहा है ।भारतवर्ष के हिमालयी क्षेत्र मे स्तिथ देवभूमी उत्तराखँड राज्य की संस्कृति से युनिवर्सिटी औफ सिनसिनाटी यू.एस.ए के प्रोफेसर स्टेफन फ़िओल इतने प्रभावित हुये कि यँहा के प्रसिध लोक गायक, जागर सम्राट, ढोल वादक श्री प्रीतम भरतवाण जी को यू.एस.ए ले गये और वँहा के लोकल लोगो द्धारा प्रितम जी के निर्देशन मे एक शो प्रस्तुत किया ।
आप सभी लोग भी ये वीडियो जरुर देखेँ, आपको एक भारतीय व उत्तराखँडी होने पर गर्व होगा ।
धन्यवाद !
आप सभी लोग भी ये वीडियो जरुर देखेँ, आपको एक भारतीय व उत्तराखँडी होने पर गर्व होगा ।
धन्यवाद !
Wednesday, 29 May 2013
गढ़वाली MP3 गानों की कुमावनी में विडियो एल्बम रिलीज
कुछ लोग उत्तराखँडी फिल्म ईँडस्ट्री मे नाम कमाने के लिये दुसरो के गानो को चोरी करके और तोड मरोड करके एलबम निकाल रहे है जब तक कोई MP3 निकालता है तो तब तक दुसरा कोई उसी को चोरी करके विडियो बना देता है।खुद कुछ मेहनत करेँगे नही और दुसरो के गानो को खुब चोरी करेँगे ।
दरअसल बात कुछ ईस प्रकार से है कि मैने एक एलबम "ललिता छो छम्म" की MP3 रामा कँपनी से निकाली थी सोचा विडियो बाद मे बनाउंगा अगर लोगो को पसँद आया तो, लेकिन अभी यू-ट्युब पे गाना देख रहा था तो पाया कि मेरी एलबम का तो विडियो भी बन चुका है और ओ भी गानो को तोड मरोड कर वाह रे जमाना !
लोगो को एलबम का म्युजिक पसँद आये ईसलिये मैने अच्छा म्युजिक बनाया था, ईस कुमावनी एलबम मे मेरे गानो के म्युजिक को ज्योँ का त्योँ स्तेमाल किया गया है लेकिन मेरी समझ मे ये बात नही आ रही है कि इन्हे मेरा म्युजिक ट्रैक कैसे मिल गया या तो किसी ने दिया है नही तो किसी सौफट्वेयर के माध्यम से इन लोगो ने आवाज दबा कर फिर से रिकोर्डिँग करवायी होगी लेकिन येसा सँभव नही क्योँकि म्युजिक ट्रैक ओरिजनल लग रहा है ।
नीचे MP3 फौरमेट मे मेरे लिखे हुये गाने जो कि नये सिँगर अर्जुन रावत व फेमस सिँगर गजेंद्र राणा जी ने गाये थे। दोनो को ध्यान से सुनना और फिर आपको पता चल पायेगा कि दोनो गानो का म्युजिक ट्रैक एक ही है, साथ ही गानो कि लिरिक्स को तोड मरोड कर नया गाना बनाया गया है ।
दरअसल बात कुछ ईस प्रकार से है कि मैने एक एलबम "ललिता छो छम्म" की MP3 रामा कँपनी से निकाली थी सोचा विडियो बाद मे बनाउंगा अगर लोगो को पसँद आया तो, लेकिन अभी यू-ट्युब पे गाना देख रहा था तो पाया कि मेरी एलबम का तो विडियो भी बन चुका है और ओ भी गानो को तोड मरोड कर वाह रे जमाना !
लोगो को एलबम का म्युजिक पसँद आये ईसलिये मैने अच्छा म्युजिक बनाया था, ईस कुमावनी एलबम मे मेरे गानो के म्युजिक को ज्योँ का त्योँ स्तेमाल किया गया है लेकिन मेरी समझ मे ये बात नही आ रही है कि इन्हे मेरा म्युजिक ट्रैक कैसे मिल गया या तो किसी ने दिया है नही तो किसी सौफट्वेयर के माध्यम से इन लोगो ने आवाज दबा कर फिर से रिकोर्डिँग करवायी होगी लेकिन येसा सँभव नही क्योँकि म्युजिक ट्रैक ओरिजनल लग रहा है ।
नीचे MP3 फौरमेट मे मेरे लिखे हुये गाने जो कि नये सिँगर अर्जुन रावत व फेमस सिँगर गजेंद्र राणा जी ने गाये थे। दोनो को ध्यान से सुनना और फिर आपको पता चल पायेगा कि दोनो गानो का म्युजिक ट्रैक एक ही है, साथ ही गानो कि लिरिक्स को तोड मरोड कर नया गाना बनाया गया है ।
अर्जुन रावत की आवाज में हाय रे मोनिका :-
नीचे दोनो गानो कुमावनी एलबम "हाय रे सोनिया" के गाने है जो कि "ललिता छो छम्म" से चुराये गए हैThursday, 23 May 2013
ईकुल्वास
17 जनवरी 2012 क बाद करिब डेढ साल बाद मीन कलम उठाई अर एक कविता लिखी ऊ भी बडी
मुस्किल सी सम्मेलन क खातिर, पतानी क्या हुवे धी समय ही नी
मिलदु अब त़ा| दुबई मा हर साल हम लोग उत्तरांचली काब्य
एंव सांस्क्रतिक सम्मेलन करदां, ये साल २०१३ मा मेरी
कविता कु श्रिषक छ "ईकुल्वास" जू की आप सभी दगडियो दगड शेयर कारनु
छौ, आशा करदु कि आप सभी दगडियो तै भी पसंद आली।
चखुलियों कु चैंच्याट मची गे, धार मा त्यू घाम येगे
खडु उठ हे मंगथु बेटा, मुक धो अर आग जगै
दे |
मीन ............
मोळु गाडे दे, भैंसू पिजै दे, भैर कु काम सब निपटै दे
रतब्याणी बटी रबडा-रबडी, खडु उठ अब एक घुट
चाय पिलै दे ||
एक घत्ती पाणी ले दे धी अर, नये धुये क भी तू येजै
कल्यो पकैक धर्युं छ मेरु, खैक तू स्कुल चली जै
|
सुण ..............
गोर लिगी जै, डांडा बटे दे, हाफ़ टैम मा दिखदी भी रै
ब्याखुनी दां जब छुट्टी होली, गोरो तै भी घर लेक औयी ||
तेरु भी बाबा बुरु हाल ह्वेगे, काम कु बोझ सरा त्वे पर येगे
भोल तीन लखडों कु जाण, आज छुट्टी की
अर्जी दे दे |
अर हां स्कुल जाण सी पहली ..........................
भूल्ली तै दुध पिलै दे, भितर ग्वाडी दे, भैर बटी ताळु मारी दे
दिन मा औलु मी एक घडी कु, चाभी भैर ब्यांर धारी दे ||
घास कु आज मै गदन ही जौलु, रोपणी मा भी पाणी ळगौलु
बडी मुस्किल सी आयी बारी, सरै पुंगडियो तै सौकी औलु |
हे जी हमार भी बखर खुलयान, भोळ मै तुमार बखर लिजौलु
तूम भग्यानोन ही साथ दे मेरु, तुमारु अहसान मै कन कै द्योलु ||
कचापिच ये बस्गाळ मा ह्वेगे, खुट्टियों पर मेरु कादौं लगिगे
यीं द्योरी पर भी कांड लग्यां छ्न, भितर च्वींक त्यू छ्लपंदु ह्वेगे |
येंसु रुडियो मा ये कुड तै छौळु, मोरी-संगाडो तै भी ऊच्योळु
कुछ पैसा मंगथु कु बाबा अर, कुछ पैसा मै भी कमौलु ||
मुंडै बाण की चकडात पुडीं छ, कैमु झी मै हौळ लगौलु
जेठा जी होर तुम ही लगै द्या, तुमारु सिवा अब कैमु जौलु |
धनकुर बुळ्या धनकुर द्योळु, ध्याडी बुळ्या ध्याडी दिलौलु
बळ्दो तै घास पाणी, घर मु ही पहुँचै
द्योलु ||
"ईखुली ईखुली मा चखुली की आस, ईखुली
रैण कु ऊ अहसास
अपणु ही घर होंदु वनवास, कभी ना
कै पर लगु ईकुल्वास
कभी ना कै पर लगु ईकुल्वास, कभी ना कै पर लगु ईकुल्वास"
Copyright @ Vinod Jethuri
On 06/05/2013 to
13/05/2013 every morning at 6:30 A.M
Subscribe to:
Posts (Atom)