हर साल की तरह ये साल भी दुबई मा आयोजित उत्तराखँडी काब्य एँव साँस्क्रतिक सम्मेलन KESS - 2018 क अवसर पर मीन अपणी या कविता "मी प्रवासी पहाडी छौँ" प्रस्तुत करी, आप सभियोँ कु दग़डी सम्लियात करणु छौँ शायद आपतै भी पसँद आली ।
मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
देवभूमी उत्तराखँड कु रैबासी छौ
छोडी क ये ग्योँ वीँ धरती तै ।
आज बण्यु परवासी छौँ ।।
परवासी बण शौक नी छ मीतै
मजबूरी कु मारियुँ छौ
स्वास्थ्य, सडक अर शिक्षा जन
मूलभूत सुविधाओँ सी हारयुँ छ
विजळी न हो जख दिखणु कु अर
बाठु न हो हिटणु कु
स्कूल न हो जख पढणु कु अर
मास्टर न हो दिखणु कु
तूम ही बुला कन कै राँ वख ?
जख स्कूल जांद छोरा बस नचणु कु
मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
डाँडी – काँठियोँ कु रैबासी छौ
याकुँ छोडी मीन वीँ धरती तै
आज बण्यु परवासी छौ
जख अस्पताळ न हो ईलाज करणु कु
अर डाक्टर न हो जान बचाण कु
तूम ही बुला तब कन कै राँ वख ?
बिन मौती कु अध-बाटु मुन्नु कु
एम्बुलेँस की सुविधा नी जख
मरिजोँ तै अस्पताळ पहुँचाणु कु
वख दारु क वैन चना छन
घर – घर दारु पहुँचाणु कु
मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
रौतेळ मुलक कु वासी छौ
याकुँ छोडी मीन वा रौँतेली धरती
आज बण्यु परवासी छौ
राशन की दुकानियोँ मा जख
राशन नी छ खाणु कु (अरे मीन बोली)
ऊँ दुकानियोँ मा मीन सुणी अब
दारु मिलली प्याणु कु
रोजगार भले कुछ न हो वख
खाणु अर कमाणु कु
पर गौँ – खोळोँ का येथर पैथर
ठेका खुली गेन प्याणु कु
मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
घनघोर जँगळो कु रैबासी छौ
याकुँ छोडी मीन वीँ धरती तै
आज बण्यु परवासी छौ
खेती पाती कुछ कै नी सकदाँ
सुंगर अर बाँदर आणा छन खाणु कु
रात विरत कखी जै नी सकदाँ
मैसाग लग्युँ छ बोणो कु
धार सुखी गेन, गाड घटी गेन
पाणी नी मिलणु पेणू कु
तूम ही बुला कन कै राँ वख ?
जख मूलभूत सुविधायेँ न हो जीणु कु
मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
गाड गदनियोँ कु रैबासी छौँ
याकुँ छोडी मीन ऊँ गदनियोँ तै
आज बण्यु परवासी छौ
सुविधायेँ भले कम हो लेकिन
रौनक अलग ही छ पहाडोँ कु
मनिखी ता रै पर देवता भी जख
पसंद....., करदन बसणु कु
सडक, स्वास्थ्य अर शिक्षा दगडी
रोजगार हो गर वख जीणु कु
मनखियोँ तै स्वर्ग हुवे जालु
उत्तराखँड....., बसणु कु
मनखियोँ तै स्वर्ग हुवे जालु
उत्तराखँड....., बसणु कु - 2
© विनोद जेठुडी on 10/05/2018 @ KEES 2018