यु छ मेरु, ऊ छ तेरू
द्वीयोंमा पुडयु झमेलु..!
द्वीयोंमा पुडयु झमेलु..!
बिच बचाण गै छ मीता
बणिग्यो ईन जन पिचक्यु गन्देलू
क्या मिललू और क्या ह्वे जालु ?
द्वेष छोडीक प्रेम अपनालू !
भोल कु क्वी पता नी छ लाटू..
पल भर मा पतानी क्या ह्वे जालू !!
ईक बुनू छौ मी छौ बडू..
हैकु बुनू छौ मी नीछ छुटटू !
सभी मनखी एक समान ..
पैसो पर छ क्या भरोशू ? !!
बीच बचोव मा अब नी जौलु !
युं झगडो सी दुर ही रौलु..
अहकार मा स्यो-बाघ बन्या छन
यों बाघो सी मै खये जौलु
"कत्का सुन्दर होली दुनिया
जु मिली जुली क राय
छोडी ईर्श्या, लालस, मनसा
प्रेम कु बाठु अपनाय"...
Copyright © 2010 Vinod Jethuri
Bahut hi sundar kavita.
ReplyDeleteDhanybaad Bisht ji...
ReplyDelete"कत्का सुन्दर होली दुनिया
ReplyDeleteजु मिली जुली क राय
छोडी ईर्श्या, लालस, मनसा
प्रेम कु बाठु अपनाय"...
...bahut achhe bhav...
Aapki baat satya ho.. yahi kaamna hai..
Haardik shubhkamnayne
Bahut-Bahut Dhanybaad Kavita ji....
ReplyDeleteHam sab aapas me mil jul ke rahe to nischay hi santi hi santi hogi..om shanti om..