Monday, 31 May 2010

यु छ मेरु, ऊ छ तेरू


यु छ मेरु, ऊ छ तेरू
द्वीयोंमा पुडयु झमेलु..!
बिच बचाण गै छ मीता
बणिग्यो ईन जन पिचक्यु गन्देलू

क्या मिललू और क्या ह्वे जालु ?
द्वेष छोडीक प्रेम अपनालू !
भोल कु क्वी पता नी छ लाटू..
पल भर मा पतानी क्या ह्वे जालू !!

ईक बुनू छौ मी छौ बडू..
हैकु बुनू छौ मी नीछ छुटटू !
सभी मनखी एक समान ..
पैसो पर छ क्या भरोशू ? !!

बीच बचोव मा अब नी जौलु !
युं झगडो सी दुर ही रौलु..
अहकार मा स्यो-बाघ बन्या छन
यों बाघो सी मै खये जौलु

"कत्का सुन्दर होली दुनिया
जु मिली जुली क राय
छोडी ईर्श्या, लालस, मनसा
प्रेम कु बाठु अपनाय"...

Copyright © 2010 Vinod Jethuri

4 comments:

  1. "कत्का सुन्दर होली दुनिया
    जु मिली जुली क राय
    छोडी ईर्श्या, लालस, मनसा
    प्रेम कु बाठु अपनाय"...
    ...bahut achhe bhav...
    Aapki baat satya ho.. yahi kaamna hai..
    Haardik shubhkamnayne

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  2. Bahut-Bahut Dhanybaad Kavita ji....
    Ham sab aapas me mil jul ke rahe to nischay hi santi hi santi hogi..om shanti om..

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