Tuesday 17 January 2012

गौँव मा अजकाल ह्यो पुडियू छ

गौँव मा अजकाल ह्य़ो पुडियुं छ
जड्डू न ठन्डकार मच्यु छ ।
अर ये दुबई ये देश मा अंजु भी...
गर्म न बुरु हाल हुयु छ ॥

जडडू क दिनियो कि लम्बी-लम्बी राती
आग सेकी तै पुडदी निवाती ।
अर ये मुल्क ये देश मा सदानी
किलै ईत्का गर्म होन्दु पतानी ? ॥

गर्म झूल्लो सी बदन ढक्यु छ
जड्डू जु गौँव मा ईत्का हुयू छ ।
अर ये मुल्क ये देश मा कभी भी
ठंड ता रै पर बर्खा भी नी ह्वे छ ॥

बैसाखु बोडा ऊडियार बैठ्यु छ
औडौळु, बरखा अर ढांडु पुंणू छ ।
अर ये मुल्क ये देश सदानी..
बथौ कु दगड मा रेत ऊडणू छ ॥

हत्थि, खुट्टी अर मुक्की ढक्की छ
ठन्डी क स्कुलियो की छुट्टी पुडी छ ।
अर ये मुल्क ये देश अजो भी..
ठन्डियो मा भी, ए/सी चनी छ ॥

गौँव मा अजकाल ह्य़ो पुडियुं छ
ठन्डु न ठन्डकार मच्यु छ ।
अर ये दुबई ये देश मा अंजु भी...
गर्म न बुरु हाल हुयु छ ॥

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
17 जनवरी 2012 @ 5:15 PM

11 comments:

  1. वाह, क्या बात है।
    बहुत सुंदर तरीके से आपने वहां का हाल बयां किया है।

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  2. धन्यबाद महेंद्र जी ..
    इस कविता के माध्यम से मैंने दुबई और उत्तराखंड के बिच तुलनात्क समीक्षा कि है आजकल पहाडो में ठण्ड से बुरे हाल है और यहं दुबई में गर्मी कम होने का नाम ही नहीं ले रही है.... हमेशा गर्म रहता है ...

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  3. thand ka apni boli mein yatharth chitran padhkar kabhi himpat ke samay bitaye din yaad aane lage hain..
    Aapne mere blog par aaye, bahut achha laga, jab kabhi koi apna garhwali bhai-bahan milta hai to bahut achha lagta hai... aap bhi jarur nepal ho aayeye... bahut achhi jagah hai ghoomne-firne ke liye... aur han passport ki jagah voter ID se kam chal jaata hai hai..
    haardik shubhkamnayen!

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  4. .................फिर बि यई ह्यूं मा क्वी रणु नि चांदा, सब्बी रेत-गारा मा जानै खातिर ताण माना छ जेठुड़ी जी....... किलै, सोचा जरा !!

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  5. प्रतिक्रिया कु वस्त धन्यबाद कविता जी ...
    सबीर भाई या ही ता उत्तराखंड कि मुख्य समस्या छ ..
    नेगी जी कु एक गीत याद आनू ...
    ना दौड ना दौड उन्दरी कु बाठु ..
    उन्दरी कु सुख द्वि चार दिन कु
    उकाली कु सुख सदानी कु लाटा....

    बस पल भर कु सुख कु खातिर यु होणु छ ... हम सबो तै पल भर कु सुख चएंदु... सुबीर भाई मै सुचाणु चौ कि इन ता हवे नी सकदु कि आप कि टिप्पणी ना मिलु मेरी कै भी कविता पर .. धन्यबाद ..

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  6. आंचलिक रचनाओं का अपना अलग ही महत्व होता है ....
    वैसे जेठुडी जी ... इतना गरम भी नहीं है आजकल दुबई ... पारा १० से १८ तक ही जा रहा है पिछले कई दिनों से ...

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  7. दिगंबर जी धन्यवाद आपका हमारे ब्लॉग पर दस्तक देने के लिए ... सर जी ये रचना १५ तारिक के लगभग कि लिखी हुयी है जब दुबई का तापमान ३०-३५ तक चल रहा था .... अभी तो ठंडी महसूस कर रहा हूँ सुबह के समय ... कुछ दिन पहले फुजैराह और रस अल खेमाह का तापमान १ डिग्री तक पहुँच गया था ..सादर ..

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