दुबई मा आयोजित उत्तराखंडी काब्य एवं सांस्कृतिक सम्मलेन - 2015 मा मैन अपणी कविता "भयाता" कु कविता पाठ करी जू की आप सभी लोगो कु दगडी सम्ल्यात कनु छौ |
मेरी कविता गौँव मा द्वी भाईयोँ की आपस मा लडै कु वर्णन छ । साथ मा द्युराणी जीठाणी की लडै अर लडै कु कारण अर समाधान पर आधारित छ | कविता कु नौँ छ "भयाता" आशा करदुँ कि आप तै पसँद आली ।
मेरी कविता गौँव मा द्वी भाईयोँ की आपस मा लडै कु वर्णन छ । साथ मा द्युराणी जीठाणी की लडै अर लडै कु कारण अर समाधान पर आधारित छ | कविता कु नौँ छ "भयाता" आशा करदुँ कि आप तै पसँद आली ।
एक दिन की बात छ कि मी गौँव छ जाणु, बाठ मा चथरु भैजी होर कु
घौर पुडदु । मीन थक विसाण क वस्त जनी अपणु बैग भ्वीँ मा धारी अर गुठ्यार जिँथा
देखी ता क्या देखी ...
मीन गौँव मा भयात देखी, एक दुसरोँ कु साथ देखी
पर इन कभी नी देखी, जू मीन आज देखी । - 2
कि, लडै जुडीँ छ द्वी भयोँ मा, खन्दियोँ की मार देखी
एक कु हाथ टुटी, हैकु हुयुँ ल्वेखाळ देखी ॥
छुडान्दी छुडान्दी गयोँ मी भी, फिर मीन पुछताछ करी
किलै क्या ह्वायी भाई किलै लँडा छ, ईन क्या बात हुयी ? –
2
कि, मिशाल छ कभी गौँव मा तुम्हारी, आज किलै दुशमन्यात
हुयी ?
दारु क्या सी क्या कराँदी, आज मीँ तै अहसास हुयी ॥
एक बुलदु येन मेरी, पुँगडी कु ओड सरकायी
हैक बुलदु वेन वीँ , पुँगडी कु बँटवारु नी कायी – 2
चोरी कु एल्जाम भी एक न हैकु पर लगायी
एक बुलदु गुलाबन्द, ता हैकु बुलदु कि नथलु चुरायी ॥
बात चलणी ही छ कि फिर, भितर बटी कुछ धमध्याट ह्वेयी
धमेलियोँ कि खिँचा ताणी, गाळियो की बरसात ह्वेयी । - 2
झमडा - झमडी मरा – मारी, दिवतोँ कु सुमिरन ह्वेयी
बुढडी ब्वे बिचारी करदी भी क्या, दुर बटी बस दिखदी रैयी ॥
मीन गौँव मा मिठास देखी, एक दुसरोँ कु साथ देखी
पर इन कभी नी देखी, जू मीन आज देखी । - 2
कि, लडै जुडीँ छ द्वी बैणियोँ मा, धमेलियोँ की खिँच ताण
देखी
कखी हाथियोँ की चुडी टुँटी, ता कखी काँडी की मोती बिखरीँ
दिखदा दिखदी येन सभी, कैन बुझायी ता कैन समझायी
क्वी ता सच मा छुडाण छ पर, कैन उँ तै और उकस्सयी
आग लगाण वाळोँ न पटवारी चौकी फोन घुमायी,
कि जल्दी सी ये जा पटवारी जी, आज गौँव मा कत्ल्यो ह्वे
ग्यायी
पँच बुलियेगेन, प्रधान बुलियेगेन, अब मीटिँग शुरु ह्वे
ग्यायी
पटवारी जी न द्वी भाईयोँ तै, कन्दोडिओँ मा ऊँ समझायी । -
2
बडु वाळु मु न मुर्गा, ता छुट्टु वाळु मून बोतल मँगायी
सबोँ न खायी- प्यायी, अर केस बिना रिपोर्ट की खतम ह्वे
ग्यायी ॥
“न हो कभी कुजाणी कैकी, कुजगा सी जी लगी
जा
छुट्टी सी लडै मा भी बडू नुकसान न ह्वे
जा ।
न लडा न मरा न कभी कैकी काट कटा
चार दिन की चाँदनी मा बस प्रेम सी रा ॥“
© विनोद
जेठुडी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-05-2016) को "अगर तू है, तो कहाँ है" (चर्चा अंक-2349) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'