Saturday, 28 May 2016

बचपन क ऊ बाळपन - Childhood

दुबई मा 27 मई  तै आयोजित "उत्तराखँडी काब्य एवँ सांस्कृतिक सम्मेलन" - 2016 मा मीन अपणी या कविता " बचपन क ऊ बाळपन" कु कविता पाठ करी । आप सभी दगडियोँ कु दगड समल्यात छौ कनु आशा करदु कि आपतै पँसद आली । 


दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस जीणा छाँ हम 
जिन्दगी क ये जँजाळ मा ॥ 

बचपन क ऊ दिन भी बड़ा अजीब होन्द थौ 
तिबारी डिँडाळियोँ मा चखळ पखळ कुटमदारी मा रैन्द थौ 
माँ जी कु प्यार अर पिताजी कु दुलार 
ता दादी दादा घुघौती खिलैतैकथा सुणादँ थौ 
भैजी सुटकी की डौर सी हमतै पढाँदु थौ 
ता दिदी हमारु बाँठ कु काम, खुद ही कै देंदी थौ 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस कटणा छँ दिन 
जिन्दगी क ये मायाज़ाळ मा 

 न सोच न फिकर न लोभ न लालच 
बस खिलण मा ही मस्त रैद थौ 
कभी पिल्ला गोळी ता कभी गिल्ली डँडा
अर क्रिकेट मा ता अलग ही नियम होन्द थौ 
मथली पुँगडी मारी ता द्वी रन
बिल्ली पुँगडी आउट होन्दु थौ
अगर मरीयाली जू नथ्थू दादा होर की धुरपळी मा 
ता बौल भी खुद ही लेण पुडदी थौ । 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस जीणा छँ हम 
जिन्दगी क ये जँजाळ मा 

तमलेट अर कँटर बजै - बजै क हम पाणी तै जाँद थौ 
8-10 घत्ती पाणी ता ख्याल ही ख्याल मा लाँद थौ 
ब्याखुनी दौँ पाणी कु धार मु अपनी ...  
अगल्यार औन्दी औंदी कभी रात पुडी जांदी थौ
ता कभी भिगी तै तरबुन्द ह्वे जाँद थौ 
जब फुट्याँ भाँडो परन, मुँड तुनसरै पाणी चुँवी जांदू थौ 

 दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस कटणा छँ दिन 
ऊँ बचपन वळी खुशियोँ तै खुज़ाण मा 

सरै गौँव मा एक ही टीवी होन्दु थौ 
अर तख टीवी दीखण वालों कीबड़ी भीड रैन्दी थौ 
शक्तिमान दिखण क बाद......
हम भी उडण कि कोशिस करद थौ 
अगर विसियार जू कभी लगी गे गौँव मा
रुमक बटीन रतब्याणी कु पता ही नी चलदु थौ । 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
​खुशनसीब छन ऊ जू रैँद गौँव मा 
ताजी हवा शुध पाणी ​सँँग मा 

बार त्यौहारोँ मा गौवॅ मा, बडी रौनक रैदी थौ 
होळी मा हुलेरियोँ की टोली अर, 
बग्वाळियोँ मा भैलु की लडै होन्दी थौ 
फूलोँ कु महिना सुरज औण सी पहली 
​फ्योली क फूलोँ सी भुरीँ कँडी लेन्द थौ 
फिर फूल संग्राँद तै, देळ नगाँण क बाद 
बिखोदी तै मंदाण मा, गीत सुण मा बडू आनंद औंदु थौ 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस खुदेणु रैँदु यु मन 
ऊँ गौँव खोळो की याद मा  

​स्कूल जाँदी दौँ की, रौनक ही अलग रैँदी थौ 
सरै गौँव क स्कूलिया जब, कठ्ठी जाँद थौ 
बाठ मा अगर कैकी कखडी दिखे गे...
ता वीँ कखडी तै चोरी क, सभी मिली बाँटी क खाँद थौ 
स्कूल मा गुरुजी भी कुछ, सजा इन द्यादँ ​थौ 
कि मुर्गा बणै - बणै तै पाठ, याद कराँद थौ 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
काश कि फिर सी औन्दु बचपन 
बढदी ज्वानी कु यीँ ऊकाळ मा 
काश कि फिर सी हँसादु बचपन 
काश कि फिर सी औन्दु बचपन - 2



 © विनोद जेठुडी, 26 मई 2016 


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