आज तेरू बग्त होलु ता, मेरु भी बग्त आलु
बग्त, बग्त की बात छै बल, बग्त ही बतालु
खयुँ कमायुँ जू भी छ सब, धरयुँ कु धरयुँ रै जालु
जै तै तू आज अपन्याणी छै, ऊ भोळ कै औरों कु हुवे जालु
सुणी ले रे मनखी, मनख्यात न छोड़ी, सब कुछ देण पोडुलु
चार दिन की चाँदना छ, खळबट निकळी जालु
मंख्यात मनखियों मा, मयाळुपन ऊ, अब पहली जन नी राई
अफखोर हुयां छान, फुट्याचंद बन्या छन, पुटुकु कभी नी भुरियायी
मनखी जन्म त्वेन पाई री मनखी, वेकु उद्धार करि ले
जितना हो समेटी ले तू, पुण्य की भरी ले झोली
सुणी ले रे मनखी, मनख्यात न छोड़ी, भोरी ले पुण्य की झोली
खुशियों कु रंगन रंगै दे धरती, मिली-झूली खेला छरोळी
अभी भी सुधरी समळी जा मनखी, न कौर चोरी-जारी
मार पीट अर झूठ-पीठ की, बड़ी करियाली अत्याचारी
सत्कर्मों सी अपणु मनखी, भोरी ले पुण्य की झोली ।
जतका खर्चीली, उत्का पैली, या झोली ता भुरदी जाली
सुणी ले रे मनखी, मनख्यात न छोड़ी, भोरी ले पुण्य की झोली ।
खुशियों कु रंगन रंगै दे धरती, मिली-झूली खेला छरोळी
मोह माया अर लोभ क्रोध यू, बाठू छन हड़चणकु
पुण्य दया और दान धर्म कु बाठु छण सतकर्मो कु
सुणी ले रे मनखी, मनख्यात न छोड़ी, सब कुछ देन पुड़ुलु
चार दिन की चाँदना छ, खळबट निकळी जालु
© Vinod Jethuri