अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।
अन्न-धन्ना क कुठठारों की पूजा होंदी छ, पूजा की वा थाळ नी रै ।।
कार्तिक महीना आली बग्वाळ, बग्वाळ की वा जग्वाळ नी रै ।
खाली गौंव अर रीता कुंडों की धुरपळी मा अब पठाळ नी रै ।।
14 साल बनवास काटी, राम जी ता घौर एगे ।
अपणु चली गेन जु छोड़ीक परदेश, सदानी कु परवासी ह्वेगे ।।
आणि-जाणी ता छोड़ी ही छ पर, बोली-भाषा भी बिसरी गे ।
अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।।
बीर भड माधो सिंह न लड़ै जीती ता हमन बग्वाळ मनै ।
उन्की सेना कु घौर पहुँचण पर, खुशी मा हमन फिर ईगास मनै ।।
हमारी ईगास अलग ही होंदी छ, अलग ह्वेकी भी अब खास नी रै ।
अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।।
जूं गोरों की पूजा होंदी छ, ऊँकु आज बरकटाळ ह्वे ।
बॉडी मा फूल डाळीक, 101 गोरों तै ख़िलान्द छ ।।
आज अपणु रीति-रिवाज, बार त्यौहार सभियों तै हम भुली गे ।
अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।।
एक महीना पहली बटिन हम, भैलु बणाण मिसि जांद छै ।
औराण-कौराण दुख-दलेदर, उक्कल जगै तै भगांद छः ।।
स्वाळ पकौड़ी खुद भी खांद अर अबाजो तै भी देन्द छः ।
अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।।
बनी बनी की बग्वाळ हम मनांद छ पहाड़ मा ।
ईगास-बग्वाळ, भीम-बग्वाळ, रिख बग्वाळ भी तुम जाणदा ?
दुनियां मा तुम जख भी राँ पर, अपणी संस्कृति सी भूल्यां न ।
बोली भाषा रीति रिवाज अपणु तुम छोड़ियाँ न ।।
© विनोद जेठुडी 30 अक्टुबर 2022, दुबई, यु.ए.ई
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