Monday, 2 May 2016

मेरु मुलक क बणो मा त्यू कन आग लगी गे



त्योँ हरयाँ – भारयाँ डाँडी – काँठियोँ पर
कुजाणी कैकी नजर लगी गे ?
लहराणा छन जू ब्याळी तक
आज खरडपट ह्वेगे !

तीन महिना पहली बटी लगीँ आग त्या
आज सरै उत्तराखँड मा फैली गे
तब जैक चितै सरकार जब
सरै जगँळोँ मा खरी – खारु ह्वेगे !

कैन ता जाणी बुझी क लगै होली पर
कैसी गलती से लगी गे
जीव – जन्तुओँ की रै जान जाणी
अर, कतियोँ तै ख्याल ह्वेगे

वीँ बिनारी मिरगी पर क्या बीती होली
ज्वा जिँदा ही जली गे
पेट मा एक और बच्चा छ
ज्वा औण सी पहली ही मरी गे

चखुलियोँ कु घोलोँ मा तब
कन चहचाहट मची गे
कुछ अंडरोँ क दगडी
छुट छुट बच्चा जब जली गे

जिकुडी मा आज मेरु धकध्याट ह्वेगे
मेरु मुलक क बणो मा त्यु कन आग लगी गे 

कोशिस करला कि अगने बटीन आग नी लगली
चिँगारी सुलगण से पहली ही बुझी जाली
नौ तब एक समय आलु कि
साँस लेण भी मुसकिल ह्वे जाली
कख बटी मिलली आक्सीजन
जब डाळी बुटी ही नी राली
सुणी ल्या धी गौँव की सभी बेटी ब्वारी
अपण अपण नाम की लगा द्वी-द्वी डाळी
जतना भी डाली जलिन वाँ सी जादा ही  लगली
अगले साल फिर सी डाँडी काँठी हरी बणी जाली 

© Vinod Jethuri on 05/02/2016

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-05-2016) को "सुलगता सवेरा-पिघलती शाम" (चर्चा अंक-2332) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. धन्यवाद सुचना देने के लिये मयँक जी । ये मेरा सौभाग्य है कि मेरी कविता चर्चा मँच पर प्रकाषित की जा रही है ।

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  3. गम्भीर चिंतन के साथ इस दिशा में जरुरी सोच विचार ही नहीं सुनियोजित तरीका ढूँढना होगा। गर्मिंयों में कहीं न कहीं हमारे पहाड़ जलते हैं लेकिन हम समय रहते जाग नहीं पाते
    ..

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  4. सही कहा कविता जी आपने । सरकार और हम सभी को इस तरह की भयँकर आग से निपटने के लिये कुछ विकल्प ढुढने चाहिये । सरकार के पास कोई भी प्लान नही और हमारे कुछ लोग अच्छी सी घास के लिये जँगल के जँगलो को आग लगा देते है ।
    चीड के व्रक्षो पर सर्वाधिक आग लगती है क्योकिँ ईससे जो तरल पदार्थ निकलता है ओ जादा आग पकड लेता है तो कौन से पेड किस जगह लगने चाहिये ये सरकार के पास प्लान होना चाहिये ।
    गँभीर विषय ।

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