Monday 27 June 2016

Garwali Poetry - Ekulwas (ईकुल्वास)

चखुलियों कु चैंच्याट मची गेधार मा त्यू घाम येगे
खडु उठ हे मंगथु बेटामुक धो अर आग जगै दे   |
मीन ............
मोळु गाडे देभैंसू पिजै देभैर कु काम सब निपटै दे
रतब्याणी बटी रबडा-रबडीखडु उठ अब एक घुट चाय पिलै दे ||

एक घत्ती पाणी ले दे धी अरनये धुये क भी तू येजै
कल्यो पकैक धर्युं छ मेरुखैक तू स्कुल चली जै  |
सुण ..............
गोर लिगी जैडांडा बटे देहाफ़ टैम मा दिखदी भी रै
ब्याखुनी दां जब छुट्टी होलीगोरो तै भी घर लेक औयी ||

तेरु भी बाबा बुरु हाल ह्वेगेकाम कु बोझ सरा त्वे पर येगे
भोल तीन लखडों कु जाणआज छुट्टी की अर्जी दे दे   |
अर हां स्कुल जाण सी पहली ..........................
भूल्ली तै दुध पिलै देभितर ग्वाडी देभैर बटी ताळु मारी दे
दिन मा औलु मी एक घडी कुचाभी भैर ब्यांर धारी दे ||

घास कु आज मै गदन ही जौलुरोपणी मा भी पाणी ळगौलु
बडी मुस्किल सी आयी बारीसरै पुंगडियो तै सौकी औलु |
हे जी हमार भी बखर खुलयानभोळ मै तुमार बखर लिजौलु
तूम भग्यानोन ही साथ दे मेरुतुमारु अहसान मै कन कै द्योलु ||

कचापिच ये बस्गाळ मा ह्वेगेखुट्टियों पर मेरु कादौं लगिगे
यीं द्योरी पर भी कांड लग्यां छ्नभितर च्वींक त्यू छ्लपंदु ह्वेगे |
येंसु रुडियो मा ये कुड तै छौळुमोरी-संगाडो तै भी ऊच्योळु
कुछ पैसा मंगथु कु बाबा अर, कुछ पैसा मै भी कमौलु ||

मुंडै बाण की चकडात पुडीं छकैमु झी मै हौळ लगौलु
जेठा जी होर तुम ही लगै द्यातुमारु सिवा अब कैमु जौलु |
धनकुर बुळ्या धनकुर द्योळुध्याडी बुळ्या ध्याडी दिलौलु
बळ्दो तै घास पाणीघर मु ही पहुँचै द्योलु ||

"ईखुली ईखुली मा चखुली की आस, ईखुली रैण कु ऊ अहसास
अपणु ही घर होंदु वनवास, कभी ना कै पर लगु ईकुल्वास" -


 ©  विनोद जेठुडी

Saturday 28 May 2016

बचपन क ऊ बाळपन - Childhood

दुबई मा 27 मई  तै आयोजित "उत्तराखँडी काब्य एवँ सांस्कृतिक सम्मेलन" - 2016 मा मीन अपणी या कविता " बचपन क ऊ बाळपन" कु कविता पाठ करी । आप सभी दगडियोँ कु दगड समल्यात छौ कनु आशा करदु कि आपतै पँसद आली । 


दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस जीणा छाँ हम 
जिन्दगी क ये जँजाळ मा ॥ 

बचपन क ऊ दिन भी बड़ा अजीब होन्द थौ 
तिबारी डिँडाळियोँ मा चखळ पखळ कुटमदारी मा रैन्द थौ 
माँ जी कु प्यार अर पिताजी कु दुलार 
ता दादी दादा घुघौती खिलैतैकथा सुणादँ थौ 
भैजी सुटकी की डौर सी हमतै पढाँदु थौ 
ता दिदी हमारु बाँठ कु काम, खुद ही कै देंदी थौ 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस कटणा छँ दिन 
जिन्दगी क ये मायाज़ाळ मा 

 न सोच न फिकर न लोभ न लालच 
बस खिलण मा ही मस्त रैद थौ 
कभी पिल्ला गोळी ता कभी गिल्ली डँडा
अर क्रिकेट मा ता अलग ही नियम होन्द थौ 
मथली पुँगडी मारी ता द्वी रन
बिल्ली पुँगडी आउट होन्दु थौ
अगर मरीयाली जू नथ्थू दादा होर की धुरपळी मा 
ता बौल भी खुद ही लेण पुडदी थौ । 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस जीणा छँ हम 
जिन्दगी क ये जँजाळ मा 

तमलेट अर कँटर बजै - बजै क हम पाणी तै जाँद थौ 
8-10 घत्ती पाणी ता ख्याल ही ख्याल मा लाँद थौ 
ब्याखुनी दौँ पाणी कु धार मु अपनी ...  
अगल्यार औन्दी औंदी कभी रात पुडी जांदी थौ
ता कभी भिगी तै तरबुन्द ह्वे जाँद थौ 
जब फुट्याँ भाँडो परन, मुँड तुनसरै पाणी चुँवी जांदू थौ 

 दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस कटणा छँ दिन 
ऊँ बचपन वळी खुशियोँ तै खुज़ाण मा 

सरै गौँव मा एक ही टीवी होन्दु थौ 
अर तख टीवी दीखण वालों कीबड़ी भीड रैन्दी थौ 
शक्तिमान दिखण क बाद......
हम भी उडण कि कोशिस करद थौ 
अगर विसियार जू कभी लगी गे गौँव मा
रुमक बटीन रतब्याणी कु पता ही नी चलदु थौ । 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
​खुशनसीब छन ऊ जू रैँद गौँव मा 
ताजी हवा शुध पाणी ​सँँग मा 

बार त्यौहारोँ मा गौवॅ मा, बडी रौनक रैदी थौ 
होळी मा हुलेरियोँ की टोली अर, 
बग्वाळियोँ मा भैलु की लडै होन्दी थौ 
फूलोँ कु महिना सुरज औण सी पहली 
​फ्योली क फूलोँ सी भुरीँ कँडी लेन्द थौ 
फिर फूल संग्राँद तै, देळ नगाँण क बाद 
बिखोदी तै मंदाण मा, गीत सुण मा बडू आनंद औंदु थौ 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
अब ता बस खुदेणु रैँदु यु मन 
ऊँ गौँव खोळो की याद मा  

​स्कूल जाँदी दौँ की, रौनक ही अलग रैँदी थौ 
सरै गौँव क स्कूलिया जब, कठ्ठी जाँद थौ 
बाठ मा अगर कैकी कखडी दिखे गे...
ता वीँ कखडी तै चोरी क, सभी मिली बाँटी क खाँद थौ 
स्कूल मा गुरुजी भी कुछ, सजा इन द्यादँ ​थौ 
कि मुर्गा बणै - बणै तै पाठ, याद कराँद थौ 

दिन ता ऊ थौनजू गुजिरीन गौँव मा 
बचपन क वे बाळापन मा । 
काश कि फिर सी औन्दु बचपन 
बढदी ज्वानी कु यीँ ऊकाळ मा 
काश कि फिर सी हँसादु बचपन 
काश कि फिर सी औन्दु बचपन - 2



 © विनोद जेठुडी, 26 मई 2016 


Thursday 19 May 2016

भयाता







दुबई मा आयोजित उत्तराखंडी काब्य एवं सांस्कृतिक सम्मलेन - 2015 मा मैन अपणी कविता "भयाता"  कु कविता पाठ करी जू की आप सभी लोगो कु दगडी सम्ल्यात कनु छौ | 

मेरी कविता गौँव मा द्वी भाईयोँ की आपस मा लडै कु वर्णन छ ।  साथ मा द्युराणी जीठाणी की लडै अर लडै कु कारण अर समाधान पर आधारित छ | कविता कु नौँ छ "भयाता"  आशा करदुँ कि आप तै पसँद आली । 
एक दिन की बात छ कि मी गौँव छ जाणु, बाठ मा चथरु भैजी होर कु घौर पुडदु । मीन थक विसाण क वस्त जनी अपणु बैग भ्वीँ मा धारी अर गुठ्यार जिँथा देखी ता क्या देखी ...

मीन गौँव मा भयात देखी, एक दुसरोँ कु साथ देखी
पर इन कभी नी देखी, जू मीन आज देखी । - 2
कि, लडै जुडीँ छ द्वी भयोँ मा, खन्दियोँ की मार देखी
एक कु हाथ टुटी, हैकु हुयुँ ल्वेखाळ देखी ॥

छुडान्दी छुडान्दी गयोँ मी भी, फिर मीन पुछताछ करी
किलै क्या ह्वायी भाई किलै लँडा छ, ईन क्या बात हुयी ? – 2
कि, मिशाल छ कभी गौँव मा तुम्हारी, आज किलै दुशमन्यात हुयी ?
दारु क्या सी क्या कराँदी,  आज मीँ तै अहसास हुयी ॥

एक बुलदु येन मेरी, पुँगडी कु ओड सरकायी
हैक बुलदु वेन वीँ , पुँगडी कु बँटवारु नी कायी – 2
चोरी कु एल्जाम भी एक न हैकु पर लगायी
एक बुलदु गुलाबन्द, ता हैकु बुलदु कि नथलु चुरायी ॥

बात चलणी ही छ कि फिर, भितर बटी कुछ धमध्याट ह्वेयी
धमेलियोँ कि खिँचा ताणी, गाळियो की बरसात ह्वेयी । - 2
झमडा - झमडी मरा – मारी, दिवतोँ कु सुमिरन ह्वेयी
बुढडी ब्वे बिचारी करदी भी क्या, दुर बटी बस दिखदी रैयी ॥

मीन गौँव मा मिठास देखी, एक दुसरोँ कु साथ देखी
पर इन कभी नी देखी, जू मीन आज देखी । - 2
कि, लडै जुडीँ छ द्वी बैणियोँ मा, धमेलियोँ की खिँच ताण देखी 
कखी हाथियोँ की चुडी टुँटी, ता कखी काँडी की मोती बिखरीँ

दिखदा दिखदी येन सभी, कैन बुझायी ता कैन समझायी  
क्वी ता सच मा छुडाण छ पर, कैन उँ तै और उकस्सयी
आग लगाण वाळोँ न पटवारी चौकी फोन घुमायी,
कि जल्दी सी ये जा पटवारी जी, आज गौँव मा कत्ल्यो ह्वे ग्यायी 

पँच बुलियेगेन, प्रधान बुलियेगेन, अब मीटिँग शुरु ह्वे ग्यायी
पटवारी जी न द्वी भाईयोँ तै, कन्दोडिओँ मा ऊँ समझायी । - 2
बडु वाळु मु न मुर्गा, ता छुट्टु वाळु मून बोतल मँगायी  
सबोँ न खायी- प्यायी, अर केस बिना रिपोर्ट की खतम ह्वे ग्यायी ॥ 

“न हो कभी कुजाणी कैकी, कुजगा सी जी लगी जा
छुट्टी सी लडै मा भी बडू नुकसान न ह्वे जा ।
न लडा न मरा न कभी कैकी काट कटा
चार दिन की चाँदनी मा बस प्रेम सी रा ॥“  

 ©  विनोद जेठुडी

Monday 2 May 2016

मेरु मुलक क बणो मा त्यू कन आग लगी गे



त्योँ हरयाँ – भारयाँ डाँडी – काँठियोँ पर
कुजाणी कैकी नजर लगी गे ?
लहराणा छन जू ब्याळी तक
आज खरडपट ह्वेगे !

तीन महिना पहली बटी लगीँ आग त्या
आज सरै उत्तराखँड मा फैली गे
तब जैक चितै सरकार जब
सरै जगँळोँ मा खरी – खारु ह्वेगे !

कैन ता जाणी बुझी क लगै होली पर
कैसी गलती से लगी गे
जीव – जन्तुओँ की रै जान जाणी
अर, कतियोँ तै ख्याल ह्वेगे

वीँ बिनारी मिरगी पर क्या बीती होली
ज्वा जिँदा ही जली गे
पेट मा एक और बच्चा छ
ज्वा औण सी पहली ही मरी गे

चखुलियोँ कु घोलोँ मा तब
कन चहचाहट मची गे
कुछ अंडरोँ क दगडी
छुट छुट बच्चा जब जली गे

जिकुडी मा आज मेरु धकध्याट ह्वेगे
मेरु मुलक क बणो मा त्यु कन आग लगी गे 

कोशिस करला कि अगने बटीन आग नी लगली
चिँगारी सुलगण से पहली ही बुझी जाली
नौ तब एक समय आलु कि
साँस लेण भी मुसकिल ह्वे जाली
कख बटी मिलली आक्सीजन
जब डाळी बुटी ही नी राली
सुणी ल्या धी गौँव की सभी बेटी ब्वारी
अपण अपण नाम की लगा द्वी-द्वी डाळी
जतना भी डाली जलिन वाँ सी जादा ही  लगली
अगले साल फिर सी डाँडी काँठी हरी बणी जाली 

© Vinod Jethuri on 05/02/2016