Wednesday 29 April 2015

डाळी न काटा डाळी लगावा


जू आज गरम मा नी रै पाणा छन
ये उमस क बान भगवान तै कुसणा छन
आज फिर कुलाडी पळ्यायीँ छ ऊँकी,
द्वी चार डाळी रै गेन जू ..............
ऊँ तै कटणु क जाण छन  

डाळी न काटा, डाळी लगावा
एक डाळी की समूण ता द्यावा
पर्यावरण सरक्षण की दिशा मे एक कदम 
              @ विनोद जेठुडी 

पुण्य पाप कु खाता

तेरु भी खाता, मेरु भी खाता 
खाता सबों  कु खुल्यू छ । 
कैकु खाली ता कैकु भूरयु 
कैकु जमा कन मिसायु छ ॥ 
पैसों कु खाता सबों न देखी 
कर्मो कु असली खाता छ । 
वे खाता कु बात छौ कनु 
जैकू लेखपाल विधाता छ ॥ 

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी